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Sunday, February 10, 2013
देवों की भूमि कहलाए जाने वाला भारत, जहाँ "भैरो" के नाम से कुत्ते तक को भी कई तीर्थस्थलोँ में जगह दी गई है। वहां जाने वाले लोग उनकी पूजा भी करतें हैं। वहीँ काम के देवता "कामदेव" अपने आप को बड़े उपेक्षित महसूस करते होंगे। जिस "कामदेव" के बिना सफल और सुखद दाम्पत्य जीवन की कामना भी नहीं की जा सकती। हमारे समाज में दो अजनबियों को शादी के सूत्र में एक साथ बांध दिया जाता है, उन दोनों को करीब लाने और उनके बीच प्रेम पैदा करने का काम "कामदेव" ही करतें हैं। चाहे प्रेम के बीज से काम का पौधा निकलता हो या काम के पेड़ पर प्रेम के फल आते हों। दोनों में से किसी भी हालत में "काम" को कोई श्रेय नहीं मिलता, प्रेम ही सारी वाहवाही बटोर लेता है। जिनकी कृपा से आदमी अपने मर्द होने का दम्भ भरता है और औरतें अपने औरत होने पर इतराती हैं। उस कामदेव की उपासना तो दूर उनके बारे में खुलकर बात भी करना लोग पसंद नही करते। जिन पर उनकी दयादृष्टि बनी रहती है वो बिना उनको श्रेय या धन्यवाद दिए हुए अपने मौज-मस्ती में मगन रहता है और जिन पर उनकी कृपा नहीं है वो तो शर्म के मारे किसी को कुछ कह भी नहीं पाता। यही वो एक इकलौते देव हैं जिनसे शिकायत तो बहुत लोगों को होती है पर कोई किसी के सामने जाहिर नहीं करता। इनकी कृपा अगर जरुरत से कम मिले तो शर्मिन्दगी और ज्यादा मिले तो बेचैनी और बदनामी तक का कारण भी बन जाती है।
खजुराहो |
इससे पहले की भाव के भूखे "कामदेव" की ये अनवरत कोशिश भारत में उथल-पुथल मचा दे, हमें उनको और उनकी अहमियत दोनों को समझते हुए, और देवी-देवताओं की तरह उनके प्रति भी अपने दिल में श्रद्धा-भक्ति जगानी पड़ेगी।
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