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मैं एक सकारात्मक सोच वाला साधारण इंसान हूँ और आदर्श जीवन मूल्यों पर जीवन जीने की कोशिश कर रहा हूँ ।

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Thursday, November 18, 2010
आजकल जो कुछ भी भारतीय टेलीविजन की दुनिया में चल रहा है वो बहुत ही चिन्ताजनक है । इससे हमारा वर्तमान ही नही भविष्य भी प्रभावित हो रहा है, क्योंकि आजकल ये युवक-युवतियों की मानसिकता और सोच को बहुत बुरी तरह से बदल रहा है और वे सही और गलत का फर्क भूलने लगे हैं। खासकर युवतियाँ जिन पर समाज और देश का चारित्रिक भविष्य निर्भर करता है। बच्चों में चरित्र के नींव का निर्माण माँ के हाथों होता है। आज की युवतियाँ जो कल माँ बनेंगी, जिनके हाथों आने वाली पीढ़ी के चरित्र की नींव रखी जानी है, वे ही सही और गलत का फर्क भूलने लगीं हैं। और ये आने वाली 'चारित्रिक मन्दी'(Moral Recession) की तरफ इशारा कर रहा है। पीछे आई हुई आर्थिक मन्दी से हमारा देश किसी तरह निकल भी गया है पर उस 'चारित्रिक मन्दी' से निकलना बहुत कठिन होगा ।
Thursday, September 23, 2010
देश की चिंता है किसको ?
जिसको को है वो कुछ कर नहीं सकता,
और जो कुछ कर सकते हैं उनको सिर्फ अपनी और अपनों की चिंता है
नेताओं को पैसे के आगे कुछ नहीं दिखता है,
न्यूज चैनलों को TRP के आगे कुछ नहीं दिखता
और हमलोगों को तो दूसरों को दोषी ठहराने की आदत हो गयी है


सुरेश कलमाड़ी आज जो कुछ भी है वो जनता की वजह से हैं,
अगर जनता उनको MP बनाकर नहीं भेजती तो आज वो मिनिस्टर भी नहीं होते
दोस्तों कही न कही हम सब को अपने अन्दर झांक कर देख की जरुरत है
हम लोग जितना facebook पे लिखने से पहले सोचतें हैं शायद उतना भी
हम वोट करने से पहले नहीं सोचते
चुनाव को आम जनता जितना हलके और गैर जिमेवाराना ढंग से लेती है
ये सब उसी का नतीजा है
हमें समस्याओं के जड़ तक जाना होगा
हमें खुद भी चुनाव की कीमत समझनी पड़ेगी और दूसरों को भी समझानी पड़ेगी...
Wednesday, September 15, 2010
एक कहावत है ----- शासक कभी सुधारक नहीं बन सकता है और सुधारक कभी शासक नहीं हो सकता है
इसलिए पहले के ज़माने में सुधारक का काम राजगुरु किया करते थे जो राजा के उचित और अनुचित कार्यों की समीक्षा करते और राज्य के जनता के हित को ध्यान में रख कर उचित सलाह देते थे.
आज़ादी के बाद से सुधारक का काम पत्रकार समाचार पत्र-पत्रिकाओं के जरिए अपनी बात सरकार और जनता तक पहुंचा कर करते थे. (और करते आ रहे हैं)
फिर आया News Channels का दौड़, News 24x7 यानि समाचार हर पल-हर घडी. लोगों ने इसे पसंद किया. News channels के आने से समाचार पत्रों के अहमियत पे थोडा फर्क पड़ा, खास कर नयी पीढ़ी न्यूज़ पढने के बजाये देखना पसंद करने लगी.
News Channels की बढ़ रही लोकप्रियता, उससे मिलने वाला पैसा और Powar को देख कर बहुत सारी कंपनियां News Channel खोलने लगी. फिर आई News Channels की बाढ़, और शुरू हुई एक दुसरे से आगे बढ़ने और No.१ पर बने रहने की होड़.
एक-दो News Channels एक दुसरे को पीछे छोड़ने के होड़ इस होड़ में तिल को तार और राई को पहाड़ बनाकर न्यूज़ के नाम पर Sensation परोसने लगे – लोगों को News के शरबत में Sensation की शराब मिलाकर पिलाने लगी. लोगों को Sensational न्यूज़ का चस्का लगा कर TRP के Race में आगे निकलने में ये Channels कामयाब रही. यह देख कर बाकी Chanels भी अपनी Sensibility भूल कर उसी Sensationalism के रह पे चल पड़ी . और तब से न्यूज़ के शरबत में Sensation की शराब की मात्रा बढती  ही जा रही है.
और अब हमलोगों को Sensational न्यूज़ की लत लग चूकी है, और हमलोग वही न्यूज़ चैनल देखते हैं जो हमें ज्यादा Sensational न्यूज़ देखता है . यही वजह है जो न्यूज़ channels सबसे ज्यादा Sasationalism दिखता है उसी की TRP सबसे ज्यादा होती है.
ज्यादा से ज्यादा TRP के लिए ये Channels चोरी, बलात्कार, हत्या और ऐसे ही बुरे काम करने वाले अपराधियों को बार-बार दिखा कर famous करता रहेगा और लोग famous होने के लिए अपराध करते रहेंगे और. अगर ऐसा ही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी कहीं अच्छाई और बुराई में फर्क न भूल जाये .
News Channels तो अपने Moral Value और उधेशय भूल ही गए हैं , लेकिन अगर आप अपने बच्चे और आने वाली पीढ़ी में Moral Value को जिंदा रखना चाहतें तो इस Sensational News का नशा छोड़ दीजिये .
Sunday, July 4, 2010
योजनाएं और कानून जो आम जनता और गरीबों के लिए बनाए जातें हैं , वो सिर्फ कहने को गरीबों और आम जनता के लिए होतें हैं . इससे दरअसल फ़ायदा तो उन योजना क्षेत्र से जुड़े लोगों, राजनेताओं और प्रसाशन के आला अधिकारीओं को होता है . बल्कि ये लोग अपने फायदे के लिए गरीबों की हित के लिए बनाये गए योजनाओं को उन्ही के खिलाप इस्तमाल करतें हैं ......और ऐसा ही कुझ हो रहा है slum rehabilitation scheme के आड़ में.
लम्बे समय से slum में रह रहे लोगों को बेहतर आवास देने के नाम पर उन्हें सड़कों पे लाया जा रहा है. और ये सब कर रहे हैं मुंबई के कुछ बिल्डर,.... प्रसाशन उनके खिलाप करवाई करने के बजाए उनका साथ दे रही है .... और इन गरीबों के लिए आवाज उठाने राजनेता भी सामने नहीं आ रहे हैं --- राजनेताओं को तो गरीबों और उनकी समस्या सिर्फ चुनाव से ठीक पहले ही नज़र आतें हैं

सवाल ये है की वाकई में ऐसी योजनायें गरीबों के लिए ही बनाई जाती हैं ?